ग्राम टरिया में डॉ. श्याम सुंदर यादव का असमय निधन: परिवार की पुकार और स्वास्थ्य सुविधाओं की बदहाली
Palamu Jharkhand

ग्राम टरिया में डॉ. श्याम सुंदर यादव का असमय निधन: परिवार की पुकार और स्वास्थ्य सुविधाओं की बदहाली
डॉ. श्याम सुंदर की मृत्यु होने के बाद गांव में शोक की लहर।
पलामू:- 10 जून के पलामू जिले के ग्राम टरिया में मंगलवार की शाम एक हृदय विदारक घटना ने पूरे गाँव को शोक में डुबा दिया हैं। गाँव के सम्मानित चिकित्सक और परोपकारी व्यक्तित्व डॉ. श्याम सुंदर यादव (35) का उनके आवास नवा में शाम 5 बजे निधन हो गए। कई महीनों से किडनी की गंभीर बीमारी से जूझ रहे डॉ. श्याम सुंदर के असमय चले जाने से न केवल उनका परिवार, बल्कि पूरा समुदाय गहरे दुख में है। उनके पीछे दो बेटियाँ और एक लड़का, हैं, जो अब अनिश्चित भविष्य और आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं। यह घटना झारखंड पलामू के ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी और गरीब परिवारों के लिए इलाज की अप्रत्याशित लागत को रेखांकित करती है।
डॉ. श्याम सुंदर का परिवार उनकी बीमारी से लड़ने के लिए दिन-रात एक कर दिया परन्तु परिजनों के अनुसार, उनकी हालत ऐसी थी कि सप्ताह में तीन बार डायलिसिस करवाना पड़ता था। इस इलाज के लिए परिवार ने अपनी सारी जमा-पूँजी खर्च कर दी और अब तक 20 लाख रुपये से अधिक का खर्च वहन किया है।
इस भारी-भरकम राशि को जुटाने के लिए उन्होंने अपनी जमीन-जायदाद तक गिरवी रख दी। परिवार का कहना है कि झारखंड सरकार की ओर से कोई आर्थिक सहायता नहीं मिली, जिसके अभाव में उनकी जिंदगी की जंग और कठिन हो गई। झारखंड में ‘मुख्यमंत्री गंभीर बीमारी उपचार योजना’ के तहत गंभीर बीमारियों जैसे किडनी रोग के लिए 10 लाख रुपये तक की सहायता का प्रावधान है, लेकिन जटिल प्रक्रियाओं या जानकारी के अभाव के कारण डॉ. श्याम सुंदर के परिवार को इसका लाभ नहीं मिल सका।
उस दुखद दिन, डॉ. श्याम सुंदर ने शाम को भोजन किया और विश्राम करने चले गए। रात करीब 4 बजे उनकी तबीयत अचानक बिगड़ गई। परिजनों ने तुरंत स्थानीय स्वास्थ्य केंद्र से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में आपातकालीन चिकित्सा सुविधाओं और विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी के कारण समय पर मदद नहीं मिल सकी। 2021-22 की ग्रामीण स्वास्थ्य सांख्यिकी रिपोर्ट के अनुसार, झारखंड के कई प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में डॉक्टरों की कमी है, और कुछ केंद्र तो वर्षों से बिना चिकित्सक के चल रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुसार, प्रति 10,000 जनसंख्या पर 22.8 स्वास्थ्यकर्मी होने चाहिए, लेकिन झारखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में यह संख्या कहीं कम है। इसके अलावा, केवल 39% ग्रामीण लोग ही नजदीकी डायग्नोस्टिक केंद्र तक पहुँच पाते हैं।
डॉ. श्याम सुंदर के इकलौते बेटे, ठुलु कुमार, ने कांपते हाथों और भारी मन से अपने पिता की चिता को मुखाग्नि दी।
इस दुखद क्षण में परिवार और गाँव के लोग उनके साथ खड़े रहे, लेकिन ठुलु और उनकी दो बहनों के सामने अब जीवन की कठिन राहें हैं। परिवार ने सरकार से गुहार लगाई है कि उनके बच्चों की शिक्षा और बेहतर भविष्य के लिए आर्थिक सहायता प्रदान की जाए। साथ ही, उन्होंने मांग की है कि परिवार के किसी एक सदस्य को सरकारी नौकरी दी जाए, ताकि वे आर्थिक तंगी से उबर सकें।
गाँव वालों का कहना है कि डॉ. श्याम सुंदर ने अपने जीवनकाल में जरूरतमंदों की निस्वार्थ सेवा की, लेकिन उनकी बीमारी के समय उन्हें कोई सहारा नहीं मिला।
डॉ. श्याम सुंदर का परिवार पहले भी त्रासदी झेल चुका है।
उनके पिता स्व. मुन्नी यादव की 2007 में माओवादियों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। इसके बाद उनकी माँ ने बड़ी मुश्किलों से अपने तीन बेटियों और दो बेटों का लालन-पालन किया। डॉ. श्याम सुंदर की मृत्यु ने इस परिवार को और गहरे संकट में डाल दिया है।
झारखंड सरकार ने हाल ही में स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर बनाने के लिए कुछ कदम उठाए हैं। 15वें वित्त आयोग के तहत 1117 नए स्वास्थ्य उपकेंद्रों के निर्माण के लिए 619 करोड़ रुपये की स्वीकृति दी गई है, जिनमें से प्रत्येक उपकेंद्र की लागत 55.5 लाख रुपये होगी। इसके अलावा, ‘आयुष्मान भारत’ और ‘अबुआ स्वास्थ्य सुरक्षा योजना’ के तहत 66 लाख से अधिक राशन कार्डधारी परिवारों को स्वास्थ्य बीमा का लाभ देने की योजना है, जिसमें 534 नए इलाज पैकेज शामिल किए गए हैं। फिर भी, ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी स्वास्थ्य ढांचे और प्रशिक्षित चिकित्सकों की कमी के कारण इन योजनाओं का लाभ पूरी तरह से आम लोगों तक नहीं पहुँच पा रहा है।
डॉ. श्याम सुंदर की कहानी पलामू के उन हजारों परिवारों की व्यथा को दर्शाती है, जो स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी और इलाज की ऊँची लागत के कारण अपनों को खो देते हैं। उनके परिवार की पुकार अब सरकार के सामने है। स्थानीय समुदाय ने भी सरकार से अपील की है कि इस परिवार को तत्काल सहायता प्रदान की जाए, ताकि ठुलु और उनकी बहनों का भविष्य सुरक्षित हो सके।
सरकार से कोई लाभ अभी तक नहीं दी है इस दुख की घड़ी में मृतक डॉक्टर के परिचय राहत अपेक्षा रखते हैं और निश्चित रूप से मिलने चाहीए।